Last modified on 29 दिसम्बर 2011, at 10:48

कर भला होगा भला / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 29 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> अब त...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब तो चेत भला कर भाई।
बालकपन में रहा खिलाड़ी, निकल गई तरुणाई,
बहुत बुढ़ापे के दिन बीत, उपजी पर न भलाई।
धर्म, प्रेम, विद्या, बल, धन की, करी न प्रचुर कमाई,
इनके बिना बटोर न पाई, सुयश बगार बड़ाई।
पिछले कर्म बिगाड़ चुका है, अगली विधि न बनाई,
चलने की सुधि भूल रहा है, सुमति समीप न आई।
संकट काट नहीं सकती है, कपट-भरी चतुराई,
ब्रह्म-ज्ञान बिन हाय किसी ने, ‘शंकर’ सुगति न पाई।