वसंत के पद / शिवदीन राम जोशी
शारदा सरावे बसंत गुन गावे गुनी,
सुन्दर हरियाली देख चहुं और छाई है।
पीरे फूल फूल-फूल फूलन के डारि उपर,
बैठ-बैठ पक्षीगण चह-चह मचाई है।
बज रहे अनूप चंग रंग रंगन को घोल घोल,
मानव पर मानव रंग डारत हरषाई है।
कहता शिवदीन बजी अनुपम अनोखी बीन,
साज बाज सहित आज रितु बसंत आई है।।
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हरी हरी हरियाली देखि-देखि मानव मगन,
कहता शिवदीन मधुर रसीली आवाज है।
गा रहे कमाल गीत छाई चहुं ओर प्रीत,
बज रहा मृदंग चंग व सुरंग साज है।
उड रहा गुलाल लाल सुनते हैं धमाल लाल,
सबके उर उमंग धन्य आया रितुराज है।
आनन्द के रूप संत महिमा है अनंत कोटि,
यह बसंत क्या बसंत हां बसंत आज है।।
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आई तू बसंत पता लाई है बतादे कछु,
फूले फूल, फूल रहे क्या-क्या और बात है।
केसरियाँ रंगे है वस्त्र रंग-रंग छाया रंग,
हृदय में उमंग मानव फूले ना समात है।
मंगल सुमंगल रूप ऐसा अनुराग जगा,
एहो रितुराज तेरा स्वागत दिन रात है।
कहता शिवदीन राम समय शुभ सराने योग,
एरी! ए! बसंत बता कहां संत तात है।।
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आई तू बसंत रंग लाई तू बसंत,
प्यार छाई तू बसंत, प्रेम साज से सलूनी है।
बजा-बजा ताल मस्त, गा रही धमाल मस्त,
मौसम बहार चहूं ध्वनि और दूनी है।
नहीं नये लोग जाने गाते मुनी मस्त गाने,
नई-नई बात नहीं बात बहुत जूनी है।
कहां वे उमंग चंग कहां वो बसंत रंग,
कहता शिवदीन प्रेमी संत बिना सूनी है।
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प्रेम भरा अनुराग भरा ये बसंत धरा पर प्यार ले आई।
लाल गुलाल अबीर उडे फल फूल अनुपम सार ले आई।।
साज अवाज अहो स्वर ताल कमाल करे फल चार ले आई।
शिवदीन प्रवीन यकीन करो शुभ संत बसंत बहार ले आई।
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चहूं ओर आनन्द अबीर उडे ये बसंत-बसंत बसंत है भाई।
मारत हैं पिचकारी भरी अहो गेरत हैं सब रंग सवाई।।
चंग मृदंग बजे मधुरे धुन मस्त धमाल बहार यू छाई।
शिवदीन का प्यार बसंत व संत ये याद मुझे प्रभु संत की आई।।
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ऋतुओं का राजा धन्य साज बाज साजा,
बज रहे बाजा ऋतु अमृत बरसावनी।
सुखद पवन चली सखियां नांच रही आली,
राधेबर श्याम श्यामा मौसम मन भावनी।
बगिया फूल फूले राधे रची रंग झूले,
देख-देख देखो हरि हरियाली छावनी।
कहता शिवदीन राम छवि छटा बरने कवि,
ऐजी महाराज आज आई बसंत पावनी।
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छाई-छाई हरियाली चहूँ ओर ठौर- ठौर,
प्रेमलता बागन में गीत मधुर गा रही।
फूल-फूल झूल रहे मोगरा महक महक,
चम्पा चमेली चमक अमर बीज बा रही।
बाजते मृदंग चंग रंग ओ अबीर उडे़,
समझो तो सही बात मौसम समझा रही।
कहता शिवदीन मस्त महिना माघ फाग का,
सज्जन जन निहारो यारो बसंत लहर आ रही।
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प्रेम प्यार रंग संग हृदय में उमंग भरा,
धन्य धन्य ये धरा तू बसंत आ गई।
लहर-लहर लहर ये शहर ग्राम-ग्राम में,
वृक्ष पात-पात में बसंत ही समा गई।
फूल-फूल फूल के मस्त झूल-झूल के,
नर और मादा में भी मस्ती खूब छा गई।
कहता शिवदीन पवन सुगंधित सुहानी चली,
कली-कली दिल की खिली अमि सुधा पा गई।
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मन में है उमंग हृदय रंग-रंग रंग भरा,
राम कृष्ण संग सुखदाई तू बसंत है।
नाना भंति की अबीर प्यारे डारु रघुबीर उपर,
कृष्ण पे गुलाल मन भाइ तू बसंत है।
ब्रह्मा शिव विष्णु पे प्रेम पिचकारी डारु,
संत चरण चूमू उर छाई तू बसंत है।
कहता शिवदीन लाल चंग साज-साज लाई,
आई तू बसंत आज आई तू बसंत है।