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शौर्य-गीति / बसन्तजीत सिंह हरचंद
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असंख्य शत्रु-सैन्य-कंठ काट-काट के बढो
उदात्त लोकतन्त्र के लिए कराल हो लड़ो
बलिष्ठकाय ध्वंस-वीर दीप्त शौर्य - सूर्य हो ,
लिखा कठोर मृत्यु के लिए मनुष्य जन्म तो ;
अशांत शत्रु - नेत्र में अधीर अस्त्र - से गड़ो
सभीत जीव - जीव का प्रतप्त वक्ष फाड़ती ,
पुकारती लहूलुहान चोटियाँ दहाड्तीं;
रणान्ध हो अजेय वीर - मूर्ति देश की घढ़ो
असीम साहसी अभीक सिंह - भाव ले जुटो,
स्वतन्त्रता उदास ,रक्तपात के लिए उठो ;
अदम्य धैर्य धार युद्ध में शिला-शिला-अड़ो.
समक्ष दग्ध घाव ले विनाश धारदार दो ,
प्रशंसनीय द्वंद्व - मध्य वीरता-प्रहार दो ;
घमंड के पहाड़ उच्च रौंदते हुए चढो
(घुटकर मरती पुकार ,२०००)