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हक़ीक़त-ए-तसव्वुर / रेशमा हिंगोरानी
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मेरी बाहों में पिघलता हुआ सीमाब<ref>पारा / mercury</ref> कभी,
मेरी आगोश<ref>गोद</ref> में सोया हुआ सा ख़्वाब कभी,
ये मुख्तलिफ<ref>अलग-अलग</ref> तेरे अंदाज़ लुभाएँ मुझको!
कभी उड़ता हुआ बादल है तू,
बरसात कभी,
कभी जवाब बने है,
तो सवालात कभी…
तू हक़ीक़त है
तो क्यूँ सामने आता ही नहीं?
तू तसव्वुर<ref>ख़याल / ध्यान</ref> है अगर…
छू रहा है कैसे मुझे?
1992
शब्दार्थ
<references/>