भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उलाहना / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> चूका...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चूका चाल अचेत अनारी,
नारायण को भूला रहा है।
जीवन, जन्म वृथा खोता है, बीज अंमगल के बोता है,
खेल पसार मोह-माया के, अज्ञों के अनुकूल रहा है।
यह मेरा है, वह तेरा है, ममता-परता ने घेरा है,
झंझट-झगड़ों के झूले पै, झकझोटों से झूल रहा है।
भोग-विलास रसीले पाये, दारा-पुत्र मिले मनभाये,
मानो मृग-तृष्णा क ेजल में, व्योम-पुष्प-सा फूल रहा है।
‘शंकर’ अन्त-काल आवेगा, कुछ भी साथ न ले जावेगा,
झूठी उन्नति के अभिमानी, क्यों कुसंग के ऊल रहा है।