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विगत यौवना / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

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बीता यौवन तेरा,
बुढ़िया बीता यौवन तेरा।
धौरा रंग जमाय जरा ने, कृष्ण कचों पर फेरा,
झाडे़ दाँत, गाल पटकाये, कर डाला मुख झेरा।
आँखों में टेढ़ी चितवन का, वीर न रहा बसेरा,
फीका आनन-मण्डल मानो, विधु बदली ने घेरा।
झोंझ बया के-से कुच झूले, फाड़ मदन का डेरा,
अब तो पास न झाँके कोई, रसिया रस का चेरा।
चेत बुढ़ापे को मत खोवे, करले काम सबेरा,
अपनाले ‘शंकर’ स्वामी को, मंत्र समझले मेरा।