भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देह वज़ह है प्रेम की / येहूदा आमिखाई

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 4 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=येहूदा आमिखाई |संग्रह=मेरी वसीय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: येहूदा आमिखाई  » संग्रह: मेरी वसीयत ढँकी है ढेर सारे पैबन्दों से
»  देह वज़ह है प्रेम की

देह वज़ह है प्रेम की
उसके बाद, इसे सुरक्षित रखने वाला एक किला
उसके बाद, प्रेम की क़ैद है यह ।

मगर जब ख़त्म हो जाती है देह,
आज़ाद हो जाता है प्रेम
बे-हिसाब और बे-रोकटोक,
जैसे ख़राब हो जाए
सिक्के डालने वाले जुए की कोई मशीन
और तेज़ खनखनाहट के साथ उगल दे बाहर
सारे सिक्कों को एक साथ
क़िस्मत की सारी पीढ़ियों को ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल