Last modified on 8 अप्रैल 2012, at 14:22

बसंत आया, पिया न आए / मनोज भावुक

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 8 अप्रैल 2012 का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

बसंत आया, पिया न आए, पता नहीं क्यों जिया जलाए
पलाश-सा तन दहक उठा है, कौन विरह की आग बुझाए
 
हवा बसंती, फ़िज़ा की मस्ती, लहर की कश्ती, बेहोश बस्ती
सभी की लोभी नज़र है मुझपे, सखी रे अब तो ख़ुदा बचाए
 
पराग महके, पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहके
पिया अनाड़ी, पिया बेदर्दी, जिया की बतिया समझ न पाए
 
नज़र मिले तो पता लगाऊँ की तेरे मन का मिजाज़ क्या है
मगर कभी तू इधर तो आए नज़र से मेरे नज़र मिलाए
 
अभी भी लम्बी उदास रातें, कुतर-कुतर के जिया को काटे
असल में ‘भावुक’ ख़ुशी तभी है जो ज़िंदगी में बसंत आए