भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनके स्वर / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 18 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी }} {{KKCatKavita}} <poem> तनी हुई मुट्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तनी हुई मुट्ठी लिये
वे बढ़ रहे है,
क्षितिज के उस पार,
बगावत की
तयशुदा परिभाषा के साथ।

अंधेरे और उजाले,
सच और झूठ,
भविष्य और वर्तमान,
सपने और हकीकत के बीच,
स्पष्ट भेद करते हुए।

जीवन और मृत्यु,
प्रेम और जुदाई,
के बीच का विकल्प तलाशते हुए।

जीने की उत्कट तलब लिये
खामोशी की बुनी हुई पैरहन ओढ़े
शब्दों के सुगबुगाते अंगारे लिये।

आखिरी इमारत के ध्वस्त होने से पहले,
लड़ाई के प्रबल दांव पेंच लिये,
वे तमाम अवरोधों से टक्कर लें
तनी मुट्ठी के साथ
उतर आएंगे वे
यकीनन
सड़क के बीचों बीच
सूर्यास्त से ठीक पहले।