भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुलिया पर मोची / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 21 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी }} {{KKCatKavita}} <poem> यह पुलिया जा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह पुलिया जाने कब से है यहाँ
और पीपल के नीचे बैठा यह मोची भी
न पेड की उम्र से
मोची की उम्र का पता चलता है
न मोची की उम्र से पेड का
और न पानी की गति का
जो पुल के नीचे
बिना लाग लपेट बहता है
 
जब बचपन में इस पुलिया पर से गुजरते हुये
चलते चलते थक जाने पर
माँ की गोदी के लिये मचलती थी
और इस पुलिया में अपनी परछाई
देख खुश होती थी
तब भी यहीं मोची
जूते गाठंता दिखता था
तब पुलिया का
मोची का
इतना आकर्षण नहीं था
बचपन कई दुसरी ही चीजों
के लिये बना है
 
उसके कुछ वर्षो के बाद
कालेज जाने का एकमात्र रास्ता भी
इसी पुलिया से होकर गुजरा
तब जीवन की बारीकियों के बीच
मोची से मानवीयता के
तार जुडे तो सोचा
क्या यह मोची गरदन झुकाये
इसी तरह बैठे रहने के लिये जनमा है
दुनिया की यात्राऐं कभी खतम नहीं होती
पर यह मोची तो मानों कभी कदम भर भी
न चला हो जैसे
 
अब जब
दुनियादारी में सेंध लगाने
की उम्र में आ चुकि हुँ
तो भी पुलिया वहीं मौजुद है
वहीं मौजुद है मोची
अपने पूरी तरह रुई हो चुके बालों के साथ
 
बचपन से अब तक
उम्र के साथ-साथ
आधुनिक्ता ने लम्बा सफर
तय किया है
उसके पास तो वो ही
बरसों पुरानी
काली, भूरी पालिश है
चमडे के कुछ टुक्डे और
कई छोटे-बडे बुश
सिर पर घनी छाया
थोडी झड गयी है और
पुल का पानी जरुर कुछ कम हो गया है
पर जिदंगी का पानी
आज भी उस मोची के
भीतर से कम हुआ नहीं दिखता
 
शहर का सबसे सिध्हस्त मोची होने का
अहसास तनिक भी नहीं है उसे
हजारों कारीगरो की तरह ही
उसके हुनर को कोई पदक
नहीं मिला
बल्कि कई लोग तो यह भी सोच
सकते हैं
कि यह भी कोई हुनर है
फटे जूतों को सिलने का
पर भीतर ही भीतर जानते है
वे यह हकीकत की
फटे जुतों के साथ चलना
कितना कठिन है
यह बात अलग है कि
वे अब डयूरेबल जूतें पहनने लगे हैं

यह मोची, पीपल, पुलिया और बहते हुये पानी के
तिलिस्म की कविता नहीं है
यह सच्चाई है
जो केवल और केवल
कविता की मिटटी में ही
मौजूद है

यह आज की नहीं
हमेशा की जरुरत है कि
पुल भी रहना चाहियें
मोची भी
पेड के नीचें बहता पानी भी