आँगन आती
बच्चों की थी लाडली
चीं-चीं गौरैया
घर-घर में जाती
बाजरा खाती
पानी पी उड़ जाती
फुर्र गौरैया
फुदकती तार पे
शोख़ गौरैया
हर घर की शोभा
नन्हीं गौरैया
बाल-कथा- नायिका
रही गौरैया
ये भला कब हुआ
कैसे क्यों हुआ
जाने कहाँ खो गई !
प्यारी गौरैया
छज्जे और आँगन
मुँडेर सूनी
ग़ायब है गौरैया
पेड़ जो कटे
उजड़े आशियाने
दु:खी गौरैया
खोये मोखे-झरोखे
बने न नीड़
बड़ी डरी सहमी
रोती गौरैया
रे मानव ! बेवफ़ा !
छीने हैं घर
ख़तरे में गौरैया
कैसे बचेगी
कभी सोचा भी तूने
निष्ठुर मन
तू बड़ा बेरहम
सुन पाहन !
लुप्त होगी गौरैया
शुभांगी वो गौरैया
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