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आओ आओ फसल काटें / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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आय रे मोरा फसल काटि
आओ आओ फसल काटें ।
खेत ही मीत हैं, उनकी सौगात है
घर और आँगन रहेंगे भरे,
वर्ष भर वे रहेंगे भरे ।
उनका ही दान यह, धान हम काटते,
गान गाते हैं हम, ख़ूब खटते हैं हम ।
आए बादल उड़े, एक माया रची
एक छाया रची,
फिर ये जादू हुआ
धूप आई निकल ।
खेत में श्याम से आ
सुनहरा मिला—
इनकी माटी में है
प्यार अपना खिला ।
दान लेंगे इन्हीं का ही हम ।
धान हम काटते गान गाते हैं हम
ख़ूब खटते हैं हम ।
हमें सुख तो यही बाँटें—
आओ आओ फसल काटें ।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'विचित्र' के अन्तर्गत 37 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)