Last modified on 11 जून 2012, at 20:55

चुप-चुप रहना सखि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:55, 11 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |संग्रह=निरु...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍
»  चुप-चुप रहना सखि

नीरवे थाकिस, सखी ओ तुई नीरवे थाकिस

चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना,
काँटा वो प्रेम का—
छाती में बींध उसे रखना ।
तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं
अब तक उसकी क्षुधा, भर दोगी उसमें क्या विष !
जलन अरे, जिसकी सब बींधेगी मर्म,
उसे खींच बाहर क्यों रखना !!

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत वितान' में 'प्रेम' के अन्तर्गत 338 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)