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विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 5

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पद (135-5) से (136-1) तक

(135-5)
 
स्वामीको सुभव कह्येा सेा जब उर आनिहै।
सोच सकल मिटिहैं , राम भलो मन मानिहैं।।

 भलो मानिहैं रघुनाथ जोरि जो हाथ माथो नाइहै।
तत्काल तुलसीदास जीवन-जनमको फल पाइहै।।

जपि नाम करहि प्रनाम, कहि गुन-ग्राम, रामहिं धरि हिये।
 बिचरहि अवनि अवनीस-चरनसरोेज मन-मधुकर किये।।

(136-1)

जिव जबतें हरितें बिलगान्यो।
 तबतें देह गेह निज जान्यो। ।

मायाबस स्वरूप बिसरायो।
 तेहि भ्रमतें दारून दुख पायो।।

पायो जो दारून दुसह दुख, सुख-लेस सपनेहुँ नहिं मिल्यो।
भव-सूल, सोक अनेक जेहि, तेहि पंथ त