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पूरा जीवन दांव लगाते लोग / अश्वनी शर्मा

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पूरा जीवन दांव लगाते लोग
कब झोली से ज्यादा पाते लोग।

राहों को मिल्कियत बताते हैं
चौराहे से आते-जाते लोग।

एक लहर सब ले जाती है लेकिन
एक घरौंदा रोज बनाते लोग।

चाहों को कितना चाहे चाहो
चाह नहीं मिटती, मिट जाते लोग।

नाते-रिश्ते इक गहरा सागर
अपनी डोंगी पार लगाते लोग।

वक्त बिगड़ता है वक्तन-वक्तन
वक्त बिगड़ता वक्त बनाते लोग।

एक संगीं सा राज बना जीना
राज बनाते, राज छिपाते लोग।

रिश्ते धीमी मौत मरा करते
चुपके-चुपके शोक मनाते लोग।

दुनिया इक सतरंगी चादर है
कहीं ओढ़ते, कहीं बिछाते लोग।