भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूती थी रंग महल में / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Adiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('सूती थी रंग महल में, सूती ने आयो रे जन जाणु, सुपना रे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूती थी रंग महल में,

सूती ने आयो रे जन जाणु,

सुपना रे बैरी नींद गवाईं रे...


सुपने में आग्या जी, म्हारी नींद गवाग्या जी..

सूती है सुख नींदा में म्हाने तरसाग्या जी

सुपना रे बैरी नींद गवाईं रे ........


तब तब महेला ऊतरी,

गई गई नन्दल रे पास,

बाईसा थारो बिरो चीत आयो जी...


पूछे भाभी गेली बावली, बीरोजी गया है परदेस,

सुपने तो तने झुटो ही आयो रे ..


देखो ननद थारी भाईजी की बातां,

लाज शरम नहीं आवे,

सुपने के बाहने नैणां से नैण मिलाग्या जी....


सुपने में आग्या जी, म्हारी नींद गवाग्या जी,

सूती है सुख नींदा में म्हाने तरसया गया जी,

सुपना रे बैरी नींद गवाईं रे ........