भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन आँखिन रूप-चिह्नारि / घनानंद
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 27 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> जिन आँखिन रूप-चिन्हार...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई ,
तिनको नित ही दहि जागनिहै .
हित-पीरसों पूरित जो हियरा ,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै .
‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है .
सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है .