तब तौ छबि पीवत जीवत है अब सोचन लोचन जात जरे .
हित-पोष के तोष सुप्राण पले बिललात महादुख दोष भरे .
‘घनआनन्द’ मीत सुजान बिना सबही सुखसाज समाज टरे .
तब हार पहाड़ से लागत है अब आनि के बीच पहार परे .
तब तौ छबि पीवत जीवत है अब सोचन लोचन जात जरे .
हित-पोष के तोष सुप्राण पले बिललात महादुख दोष भरे .
‘घनआनन्द’ मीत सुजान बिना सबही सुखसाज समाज टरे .
तब हार पहाड़ से लागत है अब आनि के बीच पहार परे .