Last modified on 28 अगस्त 2012, at 12:43

खटखटाता नहीं कोई / नंदकिशोर आचार्य

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 28 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश मे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


खटखटाता नहीं कोई
जो खुले रहते हैं सदा
उन दरवाज़ों को
गुज़रते रहते हैं लोग
उन में से हो कर।

एक हलकी-सी थपकी
कभी चाह सकता है कोई
जिस के लिए पर
होन पड़ेगा बन्द उस को
खो देता है खुद को
दरवाज़ा रास्ता हो कर।

(1990)