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क्यों इन आँखिन सौं निरसंक / मतिराम

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क्यों इन आँखिन सौं निरसंक ह्वै मोहन को तन पानिप पीजै.

नेक निहारे कलंक लगै इहि गाँव बसे कहौ कैसे के जीजे .

होत रहे मन यों ‘मतिराम’ कहूँ बन जाय बरो तप कीजे .

ह्वै बनमाल हिए लगिय अरु ह्वै मुरली अधर- रस पीजे .