Last modified on 28 अगस्त 2012, at 17:06

मोर पखानि किरीट बन्यो / मतिराम

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 28 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> मोर पखानि किरीट बन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मोर पखानि किरीट बन्यो मुकुतानि के कुंडल स्रौन बिलासी .

चारु चितौनि चुभी ‘मतिराम’ सुक्यों बिसरै मुस्कानि सुधा - सी .

काज कहा सजनी कुलकानि सौं लोग हँसै सिगरे ब्रजवासी .

मैं तो भई मनमोहन को मुख चंद लखैं बिन मोल की दासी .