भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महा मोहकंदनि में जगत जकंदनि में / सेनापति
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सेनापति }} Category:पद <poeM> महा मोहकंदनि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
महा मोहकंदनि में जगत जकंदनि में,
दिन दुखदुंदनि में जात है बिहाय कै।
सुख को न लेस है, कलेस सब भाँतिन को;
सेनापति याहीं ते कहत अकुलाय कै.
आवै मन ऐसी घरबार परिवार तजौं,
डारौं लोकलाज के समाज विसराय कै।
हरिजन पुंजनि में वृंदावन कुंजनि में ,
रहौ बैठि कहूँ तरवरतर जाई कै.