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दूरि जदुराई सेनापति सुखदाई देखौ / सेनापति

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दूरि जदुराई सेनापति सुखदाई देखौ,
             आई ऋतु पावस न पाई प्रेमपतियाँ.
धीर जलधार की सुनत धुनि धरकी औ,
             दरकी सुहागिन की छोहभरी छतियाँ.
आई सुधि बर की, हिए में आनि खरकी,
             सुमिरि प्रानप्यारी वह प्रीतम की बतियाँ.
बीती औधि आवन की लाल मनभावन की,
             डग भई बावन की सावन की रतियाँ.