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सेनापति उनए नए जलद सावन के / सेनापति

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सेनापति उनए नए जलद सावन के
               चारिहू दिसान घुमरत भरे तोय कै.
सोभा सरसाने न बखाने जात कैहूँ भाँति
              आने हैं पहार मानो काजर के ढोय कै.
घन सों गगन छप्यो, तिमिर सघन भयो,
              देखि न परत मानो रवि गयो खोय कै.
चारि मास भरि स्याम निसा को भरम मानि,
              मेरे जान याही तें रहत हरि सोय कै.