भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सेनापति उनए नए जलद सावन के / सेनापति
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:38, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सेनापति }} Category:पद <poem> सेनापति उनए ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सेनापति उनए नए जलद सावन के
चारिहू दिसान घुमरत भरे तोय कै.
सोभा सरसाने न बखाने जात कैहूँ भाँति
आने हैं पहार मानो काजर के ढोय कै.
घन सों गगन छप्यो, तिमिर सघन भयो,
देखि न परत मानो रवि गयो खोय कै.
चारि मास भरि स्याम निसा को भरम मानि,
मेरे जान याही तें रहत हरि सोय कै.