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अहसास ये मुसलसल किसने जीया नहीं / अश्वनी शर्मा
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अहसास ये मुसलसल किसने जिया नहीं
दुनिया में मेरे जैसा, कोई हुआ नहीं।
सोने से दिन भी देखे, चांदी सी रात भी
खीसे में ठूंस लेते, अपनी अदा नहीं।
यूं ज़िन्दगी ने ठोकर चाहे हजार दी
पर ज़िन्दगी को कमतर हमने कहा नहीं।
लबरेज़ औ छलकते प्याले थे बारहा
दो घूंट ज़िन्दगी को हमने पिया नहीं।
लानत मलामतों से दो-चार हो लिये
आंखों से एक कतरा अपनी बहा नहीं।