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हादिसों का चार सू इमकान है / अश्वनी शर्मा

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हादिसों का चार सूं इमकान है
ये हंसी महफिल मगर अनजान है।

खासियत तो देखिये पापोश की
हर कदम की रूह की पहचान है।

चांद से जब से हुई है दोस्ती
चांदनी मेरे यहां मेहमान है।

तोड़ देता आदमी की रूह को
एक शिद्दत से जिया अरमान है।

क्या तआर्रूफ पूछते हो बारहा
आदमी है, हू-ब-हू इंसान है।

उन फरिश्तों की अलग तासीर थी
इन फरिश्तों का अलग ईमान है।

राह भूला भी नहीं, भटका नहीं
बस यही खुद पर मेरा अहसान है।