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कितने दिन जीवन जल-निधि में / जयशंकर प्रसाद
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कितने दिन जीवन जल-निधि में -
विकल अनिल से प्रेरित होकर
लहरी, कूल चूमने चल कर
उठती गिरती सी रुक-रुक कर
सृजन करेगी छवि गति-विधि में !
कितनी मधु- संगीत- निनादित
गाथाएँ निज ले चिर-संचित
तस्ल तान गावेगी वंचित !
पागल - सी इस पथ निरवधि में!
दिनकर हिमकर तारा के दल
इसके मुकुर वक्ष में निर्मल
चित्र बनायेंगे निज चंचल !
आशा की माधुरी अवधि में !