भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काली आँखों का अंधकार / जयशंकर प्रसाद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:49, 2 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |संग्रह=लहर / जयशंकर प्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

     काली आँखों का अंधकार
     जब हो जाता है वार पार,
     मद पिए अचेतन कलाकार
     उन्मीलित करता क्षितित पार-
               वह चित्र ! रंग का ले बहार
               जिसमे है केवल प्यार प्यार!
     केवल स्मृतिमय चाँदनी रात,
     तारा किरणों से पुलक गात
     मधुपों मुकुलों के चले घात,
     आता है चुपके मलय वात,
               सपनो के बादल का दुलार.
               तब दे जाता है बूँद चार.
     तब लहरों- सा उठकर अधीर
     तू मधुर व्यथा- सा शून्य चीर,
     सूखे किसलय- सा भरा पीर
     गिर जा पतझर का पा समीर.
               पहने छाती पर तरल हार.
               पागल पुकार फिर प्यार-प्यार!