भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरे कहीं देखा है तुमने / जयशंकर प्रसाद
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:59, 2 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |संग्रह=लहर / जयशंकर प्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्यार करने वालों को?
मेरी आँखों में आकर फिर
आँसू बन ढरने वालों को?
सूने नभ में आग जलाकर
यह सुवर्ण-सा ह्रदय गला कर
जीवन-संध्या को नहलाकर
रिक्त जलधि भरने वालों को?
रजनी के लघु-लघु तम कन में
जगती की ऊष्मा के वन में
उसपर परते तुहिन सघन में
छिप, मुझसे डरने वालों को?
निष्ठुर खेलों पर जो अपने
रहा देखता सुख के सपने
आज लगा है क्यों वह कंपने
देख मौन मरने वाले को?