Last modified on 3 सितम्बर 2012, at 11:18

कबहूँ न करते बंदगी / मलूकदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 3 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = मलूकदास }}{{KKCatKavita}} <poem> कबहूँ न करत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

       कबहूँ न करते बंदगी , दुनियाँ में भूले .
       आसमान को तकते ,घोड़े बहु फूले .
सबहिन के हम सभी हमारे .जीव जन्तु मोंहे लगे पियारे.
तीनों लोक हमारी माया .अन्त कतहुँ से कोई नहिं पाया.
छत्तिस पवन हमारी जाति. हमहीं दिन औ हमहीं राति.
हमहीं तरवर कित पतंगा. हमहीं दुर्गा हमहीं गंगा.
हमहीं मुल्ला हमहीं काजी. तीरथ बरत हमारी बाजी.
हहिं दसरथ हमहीं राम .हमरै क्रोध औ हमरे काम.
हमहीं रावन हमहीं कंस.हमहीं मारा अपना बंस.