Last modified on 4 सितम्बर 2012, at 16:58

धूप कच्ची औ कुहासा बस जरा सा / अश्वनी शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब भी ऐसे कई जियाले हैं
बहुत मसरूफ फिर भी ठाले हैं

वक्त तो आदतन ही बहता हैं
एक लम्हा मगर संभाले हैं।

सूप ये देखिये तो कैसा हैं
हमने अहसास कुछ उबाले हैं।

वो जो सूरज को फेंक आये हैं
उनके हाथों में अब उजाले हैं।

इन मुंडेरों पे जो फुदकते हैं
ये कबूतर ही हमने पाले हैं।

मंज़िले तय तो की कई लेकिन
हासिलों में फकत ये छाले हैं।

हमने लम्हात जी के देखे जो
वो ही सब आपके हवाले हैं।