Last modified on 10 सितम्बर 2012, at 13:04

जौ मेरे तन होते दोय / नागरीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 10 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नागरीदास }} Category:पद <poeM> जौ मेरे तन ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जौ मेरे तन होते दोय.
मैं काहू ते कुछ नहिं कहतो,मोते कछु कहतो नहिं कोय.
एक जो तन हरि विमुखन के सँग रहतो देस-विदेस.
विविध भांति के जग सुख दुख जहँ,नहिं भक्ति लवलेस.
एक जौ तन सतसंग रंग रँगि रहतो अति सुख पूर.
जन्म सफल करि लेतो रज बसि जहँ ब्रज जीवन मूर.
द्वै तन बिन द्वै काज न ह्वै हैं,आयु तो छिन छिन छीजै.
नागरीदास एक तन तें अब कहौ काह करि लीजै.