जिसके पास चली गयी मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गयी
अब जो घिरती हैं काली घटाएं
उसी के लिए घिरती है
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगंध
अब नहीं मेरे लिए
हल नही बैल नही
खेतों की गैल नहीं
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हाहर नहीं मेरे लिए
जिसकी नहीं कोई जमीन
उसका नहीं कोई आसमान।