चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन.
अहि फन मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन वन.
हंस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिलै अति.
बहु सुंदरि पदिमिनी पुरुष न चहै, न करै रति.
खलभलित सेस कवि गंग भन, अमित तेज रविरथ खस्यो.
खानान खान बैरम सुवन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो.
कहते हैं इस छप्पय पर 'रहीम खानखाना' ने 'गँग' को छत्तीस लाख रूपये दे डाले.