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किस तरफ़ से आ रही है / फ़िराक़ गोरखपुरी

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किस तरफ़ से आ रही है आज पैहम बू-ए-दोस्त.
ऐ सबा,बिखरे हैं किस अन्दाज़ से गेसू-ए दोस्त.

कुछ न पूछ ऐ हमनशीं,रुदादे-रंगो-बू-ए-दोस्त.
एक अफ़साना था दीदार-ए-रुखो-गेसू-ए-दोस्त.

इस तरफ़ भी कोई मौजे-नकहते-गेसू-ए-दोस्त.
हम भी बैठे हैं उसी रुख ऐ हवा-ए-कू-ए-दोस्त.

आ गई है नींद-सी दामाने-सहरा में मुझे.
उम्र भर रोया हूँ तुझको ऐ ज़मीने-कू-ए-दोस्त.

चढ़ गई थी त्योरियाँ मेरी उदासी पर 'फिराक़'.
याद आते हैं मुझे वो बल पड़े अबरू-ए-दोस्त.