भूले भूले भौंर बन भाँवरे भरैंगे चहुँ,
फूलि फूलि किंसुक जके से रही जायहैं.
द्विजदेव की सौं वह कूजन बिसारि कूर,
कोकिल कलंकी ठौर ठौर पछितायहैं.
आवत बसंत के न ऐहैं जो पै स्याम तौ पै,
बावरी ! बलाय सों,हमारेऊ उपायहैं.
पीहैं पहिलेई तें हलाहल मँगाय या,
कलानिधि की एकौ कला चलन न पायहैं.