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प्रात समय उठि जसुमति जननी / गोविन्दस्वामी

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प्रात समय उठि जसुमति जननी गिरिधर सूत को उबटिन्हवावति.
करि सिंगार बसन भूषन सजि फूलन रचि रचि पाग बनावति.
छुटे बंद बागे अति सोभित,बिच बिच चोव अरगजा लावति.
सूथन लाल फूँदना सोभित,आजु कि छबि कछु कहति न आवति
विविध कुसुम की माला उर धरि श्री कर मुरली बेंत गहावति.
लै दर्पण देखे श्रीमुख को,गोविंद प्रभु चरननि सिर नावति .