भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी / कालीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 5 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीदास }} Category:पद <poeM> हाथ हँसि दीन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी,
देखत ही छकी मखि कन्हर प्रबीन की.
निकस्यो झरोखे माँझ बिगस्यो कमल सम,
ललित अँगूठी तामें चमक चुनीन की.
कालीदास तैसी लाल मेहँदी के बूंदन की,
चारु नख चंदन की लाल अँगुरीन की.
कैसी छबि छजति है छाप औ छलान की सु,
कंकन चुरीन की जड़ाऊ पहुँचीन की.