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सखि,कि पुछसि अनुभव मोय / विद्यापति

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सखि, कि पुछसि अनुभव मोय .
से हों पिरीति अनुराग बखानइत, तिल-तिले नूतन होय.
जनम-अवधि हम रूप निहारल,नयन न तिरपित भेल .
सेहो मधु बोल स्रवनहि सूनल, स्रुति-पथ परस न भेल .
कत मधु जामिनि रभसे गमाओल,न बुझल कइसन गेल.
लाख-लाख जुग हिये-हिये राखल,तइयो हिय जुड़न न गेल.
कत बिदग्ध जन रस अनुमोदइ, अनुभव काहु न पेख .
विद्यापति कह प्राण जुड़ाएत लाखे मिल न एक .