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रातरानी कहो या कहो चाँदनी / राजकुमारी रश्मि
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रातरानी कहो या कहो चाँदनी
शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ.
बांसुरी की तरह ही पुकारो मुझे
एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ.
वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे
मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ.
युगों युगों से बसी है किसी नेह सी
मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ.
तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे
तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ.
एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की
हाथ पकड़े पवन को बुलाती रही
शाख सूरज किरन चम्पई रंग से
एड़ियों पर महावर लगाती रही
प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक
लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ.