भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोलिए तौ तब जब / सुंदरदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 11 अक्टूबर 2012 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोलिए तौ तब जब बोलिबे की बुद्धि होय,

ना तौ मुख मौन गहि चुप होय रहिए.


जोरिए तो तब जब जोरिबे को रीति जाने,

तुक छंद अरथ अनूप जामे लहिए .


गाईए तो तब जब गाईबे को कंठ होय ,

श्रवन के सुनितहिं मनै जमे गहिए .


तुकभंग, छंदभंग, अरथ मिलै न कछु,

सुंदर कहत ऐसी बानी नहिं कहिए .