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फागुन में आई है माधवी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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माधवी हठात् कोथा हते एक फागुन — दिनेर सोते


आई है फागुन में माधवी ।
आई कहाँ से अचानक ।
'जाना मुझे अब जाना ।' कहे वह,
पत्ते कहें घेर कानों में उसके,
'ना ना ना ना'
नाचें वो ता ता थैय्या ।।
तारे कहें ये उससे गगन के, 'आओ गगन के पार,
हम तुमको चाहें, आना तुम्हें यहाँ आना'
पत्ते कहें घेर कानों में उसके,
'ना ना ना ना'
नाचें वो ता ता थैय्या ।।
आती है दखिन वातास
कहती है आके पास
'आना इधर अरे आना।'
कहती है, 'बेला जाती है बीती
नीले अतल में दूर'
कहत, 'घटेगा क्रमशः अरे ये
पूनम का चन्द्र प्रकाश
समय नहीं और, आना अरे बस आना।'
पत्ते कहें घेर कानों में उसके,
'ना ना ना ना'
नाचें वो ता ता थैय्या ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 54 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)