भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह तो तुम्हारे पास बैठा था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 20 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |संग्रह=गीतां...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वह तो तुम्हारे पास आकर बैठा था
तब भी जागी नहीं।
कैसी नींद थी तुम्हारी,
हतभागिनी।
आया था नीरव रात में
वीणा थी उसके हाथ में
सपने में ही छेड़ गया
गहन रागिनी।
जगने पर देखा, दक्षिणी हवा
करती हुई पागल
उसकी गंध फैलाती हुई
भर रही अंधकार।
क्यों मेरी रात बीती जाती
साथ पाकर भी पास न पाती
क्यों उसकी माला का परस
वक्षों को हुआ नहीं।