भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधगले पंजरों पर / अभिमन्यु अनत

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 6 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिमन्यु अनत |संग्रह=नागफनी में उ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूकम्प के बाद ही
धरती के फटने पर
जब दफनायी हुई सारी चीज़ें
ऊपर को आयेंगी
जब इतिहास के ऊपर से
मिट्टि की परतें धुल जायेंगी
मॉरीशस के उन प्रथम
मज़दूरों के
अधगले पंजरों पर के
चाबुक और बाँसों के निशान
ऊपर आ जायेंगे
उस समय
उसके तपिश से
द्वीप की सम्पत्तियों पर
मालिकों के अंकित नाम
पिघलकर बह जायेंगे
पर जलजला उस भूमि पर
फिर से नहीं आता
जहाँ समय से पहले ही
उसे घसीट लाया जाता है

इसलिए अभी उन कुलियों के

वे अधगले पंजार पंजर
ज़मीन की गर्द में सुरक्षित रहेंगे
और शहरों की व्यावसायिक संस्कृति के कोलाहल में
मानव का क्रन्दन अभी
और कुछ युगों तक
अनसुना रहेगा ।
आज का कोई इतिहास नहीं होता
कल का जो था
वह ज़ब्त है तिजोरियों में
और कल का जो इतिहास होगा

अधगले पंजरों पर
सपने उगाने का ।