भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ के सपने / अरविंदसिंह नेकितसिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 6 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविंदसिंह नेकितसिंह |संग्रह= }} [[Ca...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संजोए होंगे
तुमने भी सपने कई
बेटे के राजा बनने की इच्छाओं के

बोए होंगे बीज
लगी होगी धुन

देखा न होगा दिन या रात
जलाते गए होंगे खून

काटते गए होंगे पेट
घोंटते गए होंगे गला
अन्य अपने सपनों का
छोटी-छोटी स्वाभाविक इच्छाओं का
एक मिठाई, एक सस्ती साड़ी का

लड़ी होगी तुम अपने अपनों से

कड़ी धूप की मार
और पति का दुलार
सब में पाया होगा एक सा स्वाद
पर कभी आँचन आने दी होगी
अपने दुखों की
भविष्य पर
अपने लाल के

गुज़रता हूँ जब
आज माँ अपनी गाड़ी में
उन खेतों के पास से
जिन में
तेरे पसीने की सींचाई आज भी होती
और दिख जाती है तू
अपनी छोटी-छोटी स्वाभाविक इच्छाओं का
गला घोंटते हुए
धूप में जलती हुई
तो सोचता हूँ
कि देखा क्यों तुमने ऐसे सपने
क्यों भूल गई तू माँ
परिन्दे के निकलते है जब पर
तो वो ठहरता नहीं
चला जाता है वह
अपने घोंसले की तलाश में
और मैं तो सिर्फ़ मानव ही था,
तो टपका दीं दो बूँदें
और चल दिया ।