बहस चल रही थी विवाह और प्रेम पर
सब याने के छोटे और बड़े सब अपनी अपनी राय दे रहे थे।
मैं कुछ अपनी राय देने वाली थी एक नवजवान लड़के ने कहा
आप बड़े लोगों को प्रेम के विषय पर ज्यादा ज्ञान नहीं है
क्योंकि आप लोगों ने शादी की, प्रेम नहीं किया है ।
जिस किसी से रिश्ता बंधा बस उसी में बंधे रहे
जिंदगी भर यह बात सुनकर मुझे अचम्भा नहीं हुआ
किंतु अपने लम्बे गृहस्थ जीवन पर सोचने को,
विवश किया अपने आप पर काबु पाकर कड़क शब्दों में मैंने कहा
सुनो नादान, नासमझ छोकरे तुमने सही कहा हमने प्रेम नहीं किया बस शादी की ।
जब मेरे बापुजी ने मेरा कन्या-दान किया था तब मैं सत्रह साल की उम्र की थी ।
मैं कोरी कंवारी थी।
तन और मन से पवित्र थी।
ससुराल में आई।
अजनबी कुटूंब को अपनाया पति को देखा
हमने अपना दाम्पत्य जीवन सम्भाला और संवारा भी
धीरे-धीरे हमने एक दूसरे को समझा और हमारा रिश्ता
मान-मर्यादा, प्रेम भावना और कर्तव्य की नींव पर धीरे-धीरे चढ़ा
बिना शब्दों का सहारा लिए हम एक-दूसरे को समझने लगे
मैंने गर्भ धारण करके बच्चों को जन्म दिया वंश को बढ़ाया
उनकी परवरिश प्रेम और ममता से की ।
घर के बुज़ुर्गों को संभाला, उनकी सेवा की
घर के देवी-देवताओं की पूजा आराधना की
पित्रों को जल चढ़ाया और उनका तरपण किया
समाज में अपनी प्रतिष्ठा थी।
घर परिवार और रिश्तेदारों में मान था इज़्ज़त थी ।
कदम से कदम मिलाकर जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना किया ।
मुझे संतोष है कि मैंने अपना कर्तव्य और धर्म निभाया ।
आज हमारा परिवार सुखी है।
मुझे संतोष है
हाँ मेरे पति देव ने मुझे नहीं कहा I Love You और मैं समझती हूँ
इसकी ज़रूरत भी नहीं थी
प्रेम-प्यार एक एहसास है जिसे महसूस किया जाता है, समझा जाता है
हमें एक दूसरे के प्रति प्यार है
इसे हमें कागज़ के टुकड़ों का सहारा लेना नहीं पड़ता
ना ही दस बार मोबाईल पर चिल्लाना पड़ता है
हमने शादी की।
अपना प्यार पैदा किया।
ज्यों-ज्यों हम बढ़ते गए त्यों-त्यों हमारा प्यार बढ़ता गया,
जिसके सांचे में हमारा परिवार सुखी था, हमारे लिए प्रेम, पूजा है धर्म है ।
हमने अपने प्यार को सस्ता नहीं बनाया
हमारी प्रेम की परिभाषा यही है ।
तुम नवजवानों के प्रेम का आधार सेक्स है, दिखावे की चीज है ।
तुम लोगों ने अपने प्रेम को इतना सस्ता बनाया है कि एक ना समझी का झोंका उसे उड़ा देता है ।
और तुम पहुँच जाते हो पुलिस स्टेशन, वहाँ बेशर्मों की तरह अपनी प्रेम लीला का चीर हरण करते हो ।
तुम तो डूबे, साथ में परिवार का नाम बदनाम करते हो ।
अपने माँ-बाप का सिर झुकाते हो ।
दूसरे इन तुम्हारे प्रेम की कहानियाँ और गाथाएँ अखबारों की सुरखियाँ बन जाती हैं ।
और कुछ दिनों के बाद एक–दूसरे को चूमकर समझौता कर लेते हो।
यह है तुम्हारा सस्ता-सड़ा दो कौड़ी का प्यार ।