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तूफान / जनार्दन कालीचरण

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सागर की गोद में जन्म लेकर
केंचुले चक्करदार मार्ग पर
अपने भारी-भरकम पैरों को रखता
शेर-सा गरजता हुआ
कछुए की धीमी चाल चलता आता ।।
हर-हर फर-फर चलने लगता भीषण समीर
झरने-सा झर-झर झरता अधीर नीर
विकंपित हो उठते सारे द्रुम-विटप
मौत का पैगाम पाकर
मिट्टी को चूमने लगते पुष्प-दम
झार देता कच्चे-पक्के सारे फल
उसके पथ पर चलने वाले
पथिकों को
मसल देता
जैसे पवन पुत्र हनुमान ने
किया था असुरों के साथ
अशोक वाटिका में ।।
वह सैकड़ों घरों को कुचलता खेतों के पल्लवों के बाल नोंचता
घंटों तक
रावण के जैसे अट्टहास करता
और ताण्डव नृत्य करके
अपनी उदण्डता का परिचय देता ।।
हज़ारों भोले असहाय जनों को
अन-घर से विहीन कर
आवारा पशुओं के जैसे
छोड़ देता नंगे आकाश के नीचे
खुले मैदान में विचरने को ;
दर्जनों को
अस्पतालों में
मृत्यु-शैया पर
सुला देता ।।
वह अनामंत्रित अनचाहा पथिक
अपनी ताकत के गुरूर में चूर
जनता की अर्चना-पूजा को
बहरे के जैसे अनसुना कर
आगे बढ़ता जाता
परन्तु
अनजान में
सारी धरती को सींचकर
साल-भर का जल दान कर
चल देता है ।।