भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह घर-वह घर / महेश रामजियावन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 10 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश रामजियावन }} {{KKCatMauritiusRachna}} <poem> मेर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा वह पुराना घर
झिलमिल कोहरों
के बीच आकर टकराता है
बार-बार
मेरे नये घर की दिवारों से

खपरैल की वह पुरानी झोंपड़ी
बरसातों में रिसता हुआ
धुमिल पुरानी लालटेन की रोशनी में
मचान में रेंगते कनगोजर
गाय के गरम हरे उपलों से
लिपा हुआ फर्श बारिश में छत से बांस के कटे हुए नलों से
जमा किये
पीपल के लोटे में उबालकर,ठंडा किया हुआ पानी
अंगारे में दगे हुए
टमाटर की हाथ से पिसी हुई चटनी
का स्वाद
किस जीभ के पास शब्द है
बताने के लिये

वह शब्द आज
मेरे इस नये घर के लोगों को
कौन पढ़ायेगा ?

आज प्रश्न पूछता हूँ
अच्छा था वह घर
या अच्छा है, यह घर ?

ला अधिकारी के पद पर कार्यरत