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उनकी ही संतान हो तुम / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

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वे जो शोषण की चक्की में
पिसते हुए रिस गए,
उनकी ही संतान हो तुम ।
वे जो अपने शरीर को
यातना के पत्थर पर
घिसते हुए घिस गए,
उनकी ही संतान हो तुम ।
वे जो निराशा के अंधकार में
आशा के गीत गाते आए;
संकट में भी
जीने का संदेश देते आए;
उनकी ही संतान हो तुम ।
जिनके त्याग को
भुलाते आए हो;
जिन पूर्वज़ों के श्रम को
मिट्टी में मिलाते आए हो;
उनकी ही संतान हो तुम ।