भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी ज़मीन की तलाश(कविता) / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:47, 11 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनीश्वरलाल चिन्तामणि |संग्रह=अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्धुवर !
इस प्यार भरे रंगों वाले
इन्द्रधनुष की छाया से दूर
न जाने किस भीड़ में खो गए हो तुम ।
याद है,
यहीं इस सतरंगी इन्द्रधनुष की छाया में
कभी एक साथ जीते थे हम
तब हमारे लिए जीवन की सार्थकता
इसी "साथ जीने" में थी
सुख-दुख के साथी बनने में थी
यह क्यों भूल जाते हो तुम ?
कल यह इन्द्रधनुष जैसा मेरा था
वैसा ही वह तुम्हारा भी था
आज भी जैसा वह मेरा है
वैसा ही वह तुम्हारा भी है

बन्धुवर !
क्या इन्द्रधनुष की उस शीतल छाया की
अब तुम्हें याद आती नहीं ?
क्या तुम्हें अब अपनी ज़मीन की तलाश नहीं ?